
शेर शाह सूरी की पामाली के बाद उसके हम नवा भी मुतास्सिर हुए. काशी नरेश राजा देव दत्त काशी से उजड़ कर सलोन कैसे आबाद हुए इसकी, तफसील मैं हासिल करने में नाकाम रहा जिसे मैं अपने किसी गहेरवार सपूत के कन्धों पर छोड़ता हूँ. ज़िला गाज़ेटियर में इस सिलसिले में बहुत कुछ मिल सकता है. इस पर काम करने की ज़रुरत है.
मैं ने अपने बुजुर्गों से सुना है कि हमारे मूरिसे आला पूरे फ़ौज फाटे के साथ सलोन आकर आबाद हुए. उनके हमराह अहल कारों से लेकर खिदमत गार तक, कई कौमें थीं.
सलोन खालसा जो अब मोहल्ला चौधराना और मोहल्ला कैथाना के नामों से जाने जाते हैं, उनकी आबाद की हुई बस्तियां हैं. इस आबादी के घरों पर निगाह डाली जाए तो माज़ी की आबाद कारी साफ़ साफ़ नज़र आती है. मोहल्ला चौधराना ऊंचाई पर है बाकी खिदमत गारों के घर नशेब में हैं. एक ईमारत मोहल्ला चौधराना में महेल कही जाती थी जो की लखोरी ईंटों की बनी हुई थी जिसके आसार अभी भी बरक़रार हैं, शहाब खानी के आखिरी चश्म चराग रौशन खां हुए. वह लावालाद थे, वसूल तहसील के सिसिले में जा रहे थे कि रस्ते में एक नव जाद बच्चे की रोने की आवाज़ सुनी, पालकी बरदारों को इसकी जानकारी के लिए कहा. खबर मिली कि बड़ी हांडी में एक नवजाद बच्चा है जो पराई से ढका हुवा है. उन्होंने और उनकी बेगम ने उस बच्चे को गोद ले लिया और नाम दिया गज़न्फ़र खां. जिनको लोग मर्द य हांडी भी कहा करते. रौशन खां की पक्की क़ब्र बैराना में देखी जा सकती है. गज़न्फ़र खां की नस्लें मुंशी नज़ीर का खानदान है.
सलोन के बीचो बीच में गहर्वारों के घर अपने हम रुतबा बैस्यों और कायस्थों को लिए आबाद हैं. किनारे किनारे मातहत तबका खिदमत गुज़ार आबाद हैं. मेरे बचपन तक इन घरों के हाकिमाना दबदबा और उनकी मातहती अपनी अपनी जगह कायम थी, इन्कलाब ज़माने ने अब नकशा बदल दिया है. गहरवार बिखर कर अलग अलग दुन्या में आबाद हो गए हैं ज्यादा हिस्सा मुंबई और आस पास के शहरों में आबाद हैं. कुछ लोग क़ुर्ब ओ जवार के मुज़ाफात में जा बसे. आज जिन जिन गाँव में गहरवारों की रिश्ते दारियां होती हैं, वहां पर कोई न कोई हमारा बुज़ुर्ग जाकर आबाद हुआ है. शजरा इस बात का गवाह है कि बहुत से हमारे बुज़ुर्ग मफ्क़ूदुल खबर (लापता) हैं. पक्सरावाँ पूरा गहरवारों से आबाद है, कुछ घर कायस्थों के भी हैं. मूरिसे आला की नस्लों को जो सब से बड़े मसअले का सामना करना पड़ा, वह था कि रिश्ते कहाँ से लें? शुरू शुरू में गोत्र का संकट रहा होगा, जो धीरे धेरे ख़त्म हुवा होगा. बेवली, रेवली, kevli, समसपुर, धरई, मामुनी उसरैना, शहेंदिया पुर, पर्शदे पुर बगहा, अथर थरिया और गुजवर वगैरा मुख्तलिफ बस्तियों से भी लड़कियां ली गईं और वहां लड़कियां दी भी गईं. सलोन के आस पास जहाँ से भी गहर्वारों की कराबत दारियाँ है, बिला शुबह, उन सारे गाँव में हमारे मफकूदुल ख़बर बुज़ुर्ग जाकर आबाद हुए
.राजा मियाँ और रानी साहिबा की कब्रें सलोन की क़ब्र गाह में एक गुमनाम मस्जिद के साथ वाकेअ है. इनको गहरवार सपूत मिल कर अगर नई शक्ल देदें तो यह गहरवारों के लिए एक नुमायाँ काम होगा.
*राजा मियाँ अपने तीन बेटों को साथ लेकर सलोन आए. दो बेटों को नया धर्म और नई जगह रास न आई और वह वापस अपने चाचाओं के पास माँढा चले गए. वहाँ उनको खोया हवा रुतबा न मिला, शरण ज़रूर मिल गई. उनको गुज़ारे के लिए एक गाँव दे दिया गया, जहाँ वह तिसेन्हे कहलाए, आजतक दो नम्बरी ठाकुर कहलाते हैं और गाँव तिसेन्हा कहलाया जो जिला मिर्ज़ापुर में है.
सलोन के बीचो बीच में गहर्वारों के घर अपने हम रुतबा बैस्यों और कायस्थों को लिए आबाद हैं. किनारे किनारे मातहत तबका खिदमत गुज़ार आबाद हैं. मेरे बचपन तक इन घरों के हाकिमाना दबदबा और उनकी मातहती अपनी अपनी जगह कायम थी, इन्कलाब ज़माने ने अब नकशा बदल दिया है. गहरवार बिखर कर अलग अलग दुन्या में आबाद हो गए हैं ज्यादा हिस्सा मुंबई और आस पास के शहरों में आबाद हैं. कुछ लोग क़ुर्ब ओ जवार के मुज़ाफात में जा बसे. आज जिन जिन गाँव में गहरवारों की रिश्ते दारियां होती हैं, वहां पर कोई न कोई हमारा बुज़ुर्ग जाकर आबाद हुआ है. शजरा इस बात का गवाह है कि बहुत से हमारे बुज़ुर्ग मफ्क़ूदुल खबर (लापता) हैं. पक्सरावाँ पूरा गहरवारों से आबाद है, कुछ घर कायस्थों के भी हैं. मूरिसे आला की नस्लों को जो सब से बड़े मसअले का सामना करना पड़ा, वह था कि रिश्ते कहाँ से लें? शुरू शुरू में गोत्र का संकट रहा होगा, जो धीरे धेरे ख़त्म हुवा होगा. बेवली, रेवली, kevli, समसपुर, धरई, मामुनी उसरैना, शहेंदिया पुर, पर्शदे पुर बगहा, अथर थरिया और गुजवर वगैरा मुख्तलिफ बस्तियों से भी लड़कियां ली गईं और वहां लड़कियां दी भी गईं. सलोन के आस पास जहाँ से भी गहर्वारों की कराबत दारियाँ है, बिला शुबह, उन सारे गाँव में हमारे मफकूदुल ख़बर बुज़ुर्ग जाकर आबाद हुए
.राजा मियाँ और रानी साहिबा की कब्रें सलोन की क़ब्र गाह में एक गुमनाम मस्जिद के साथ वाकेअ है. इनको गहरवार सपूत मिल कर अगर नई शक्ल देदें तो यह गहरवारों के लिए एक नुमायाँ काम होगा.
*राजा मियाँ अपने तीन बेटों को साथ लेकर सलोन आए. दो बेटों को नया धर्म और नई जगह रास न आई और वह वापस अपने चाचाओं के पास माँढा चले गए. वहाँ उनको खोया हवा रुतबा न मिला, शरण ज़रूर मिल गई. उनको गुज़ारे के लिए एक गाँव दे दिया गया, जहाँ वह तिसेन्हे कहलाए, आजतक दो नम्बरी ठाकुर कहलाते हैं और गाँव तिसेन्हा कहलाया जो जिला मिर्ज़ापुर में है.
न खुदा ही मिला, न विसाले-सनम,
न इधर के रहे, न उधर के रहे.
Sach he hain ap.
ReplyDeleteMunsi nazeer khan mere grend fadhar the
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