Monday, September 5, 2011

सलोन के मुस्लिम गहरवार (20)

शजरे का शजर अपनी जड़ों को संभाले हुए तकरीबन ऊपर की शाखों तक पहुँच गया है, इसमें अभी तक लगभग ७०० नाम दर्ज हो चुके हैं और कहीं कहीं पुश्ते बीसवीं पायदान को छूती हैं. हालाँकि मेरा अंदाज़ा है कि मूरिसे आला की नस्लों का ये चौथाई हिस्सा है. जो लोग इस में शामिल नहीं किए जा सकते वह मुस्तनद नहीं है कि उनकी नस्ली कड़ियों का मीलन नहीं हो पाया.
कुछ लोग सोचते होंगे कि इन गड़े हुए मुर्दों की कब्रें खोलने का क्या फ़ायदा?
मैं उनको मुतमईन तो नहीं कर सकता, हाँ! इतना ज़रूर कहूँगा कि तवारीख ए इंसानी इन्हीं गड़े हुए मुर्दों में छिपी हुई है, जब हमारा समाज पूरी तरह से इंसानियत का दामन थाम लेगा और सिर्फ इंसान के आलावा कोई हिन्दू मुस्लिम वगैरा नहीं बचेंगे तब यह इंसानी पहचान बे मानी हो जाएगी.
मेरे इस मुहिम का मक़सद है, जैसे किसी शजर के फल फूल और पत्तियाँ एक दूसरे के पोषक रहते हैं, वैसे ही गहर वर और खास कर मुस्लिम गहरवार (जो निस्बतन बहुत पामाल हो चुके हैं) एक दूसरे के यार व मदद गर हो जाएँ.अपने फल फूल को
नुक़सान पहुँचाना कोई अच्छा काम नहीं है.
किसी को नुक्सान पहुँचाए बगैर एक दूसरे का फ़ायदा सोचें.





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