Saturday, September 3, 2011

सलोन के मुस्लिम गहरवार (9)







गहरवारों की मर्यादा



*दूसरा नाक़ाबिल ए फ़रामोश वाकया गहेर्वारों में, रानियों की मान और मर्यादा का है - - -
कि राजा साहब ? की छोटी बेटी की बारात आई थी, कुंवर जी और राज कुमारी की शादी हो चुकी थी. शादी के बाद की रस्में हो रही थीं. कुंवर जी ने बड़ी साली को देखा तो उनके हुस्न के ऐसे दीवाने हुए कि उनका हाथ अपने हाथ में लेकर कहने लगे - - -
"आपके हाथ बहुत खूब सूरत हैं."
" अच्छा! अब हाथ छोडिए, मैं आप के लिए आपका मन पसंद तोहफा लेकर आती हूँ "


कहती हुई रानी अन्दर के कक्ष में गई, जल्लाद को बुलवा कर अपने उस हाथ को कटवा कर थाली में रखवाया और दूसरे हाथ में थाली लेकर कुंवर जी के पास आई और कहा ;
" लीजिए कुंवरजी आपको मेरा हाथ पसंद आया था, आप को अर्पित है, वैसे भी अब यह मेरे किसी काम का न रहा."
बात आग की तरह फैली, बड़ी बेटी के राज कुमार तक पहुंची,
राजपूत ने तलवार मियान से निकल लिया और अन्दर घुस कर अपने साढू का सर कलम कर दिया. शादी का घर मातम में बदल गया. यहीं तक बात नहीं गई, कुंवर जी की चिता पर नव ब्याहता कुमारी बहेन ने कूद कर अपने पति के साथ भस्म हो गई.
ऐसे आन बान के हुवा करते थे ठाकुर और ठाकुरानियों.
रानी पद्मिनी की ऐतिहासिक कहानी को कौन नहीं जनता.
इसके बाद तारीख साजों की कलम गहेरवारों की तवारीख को हज़रात ए नूह तक ले जाती है और इतिहास कार इसे चन्द्र वंशी राजा, राजा जनक तक ले जाते हैं जिसे इनकी क़लमी उड़ान ही कहा जा सकता है.

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