Saturday, September 3, 2011

सलोन के मुस्लिम गहरवार (7)




राजा देव दत्त के अनुज राजा गूदन देव की इक्कीस पीढियां मांढा पर हुक्मरां रहीं. आखरी राजा, राजा राम गोपाल सिंह १९४१ लावलद मरे .१९३५ में उन्हों ने राजा डैइया के गहरवार सपूत "राज कुमार विश्व नाथ सिंह" को लिया था जो अंततःगहरवारों कीपुरानी हैसियत को बरूए कार लाते हुए भारत के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया. वी. पी. सिंह गरीबों और दलितों का मसीहा जिसने मंडल आयोग की ज्योति को रौशन किया. दलितों और दमितों का सच्चा रहनुमा जिसे भारत का इतिहास आने वाले समय में शीर्ष पर रखेगा.जीते जी उन्हें यह स्लोगन मिला - - -
भारत का तकदीर है राजा नहीं फकीर है.




राजा रूद्र देव रचित ग्रन्थ में राजा देव दत्त का तज़करा इस तरह है- - -



दोहा - - - महाराज भूराज के तीन तनय सुख कन्द,

देव दत, गूदन नर पति, अपर भारती चंद .
सोरठा - - - देवदत्त महाराज मुसलमान तनैह ह्वे गए,
शेर शाह सूरी के ब्याज राज काज करने परे,
दोहा - - - गूदन देव नारंद जो तज केरा क़र तान ,
कर गहि के मांढा बसे जहाँ भरन को थान.



माज़ी बईद
राजा मानिक चंद की चार औलादें थीं १-आल्ह देव २- माल्ह देव ३-लखन देव ४- वरम जीत देव .
बड़े बेटे आल्ह देव राजा कन्नौज हुए (इन्हीं की शान में मशहूर पद्य वली आल्हा ऊदल प्रचलित है.)
दूसरे बेटे ताल्ह देव अपने बल बूते पर मारवाड़ के राजा हुए.
तीसरे बेटे युद्ध करते हुए राजा पृथ्वी राज चौहान के हाथों मरे गए.
चौथे बेटे वरम जीत देव, भाई आल्ह देव से अलग होकर ज्वाला मुखी के राजा हुए. इनके बारे में हिन्दू इतिहास कार शंकित हैं कि मुस्लिम इतिहास कार की तारिख कहती है कि राजा वरम जीत गज़नी जाकर मुस्लमान हो गए और सुल्तान शहाब उद्दीन से बनारस का कुछ इलाका पाकर वहां के राजा हुए.
राजा आल्ह देव शहाबुद्दीन की जंग हुई. उससे शिकस्त खाकर मानिक पुर आकर कड़ा को अपनी राजधानी बनाई जो गंगा के दूसरी जानिब वाकेअ है. इनकी सात पुश्तें मानिकपुर के हुक्मरान रहीं. पाचवी नस्ल में सोम देव पर मुस्लिम शाशकों ने फिर हमला किया जिसकी ताब न ला सके और मानिक पुर छोड़ कर परगना केरा मंग्रोर को अपनी राजधानी बनाया जहाँ पर उनकी ग्यारह पीढियां हुक्म रान रहीं जो इस तरह हैं - - - राजा जाहिर देव, राजा रूप देव, राजा महिल देव, राजा धार्मारक देव, राजा मिश्र वेव, राजा राजा पूरन मल देव, राजा ताल देव, राजा अलख देव, राजा जयराज देव, राजा भूराज देव, और राजा देव दत्त.
राजा मानिक चंद के बड़े भाई राजा जय चंद की कोई औलाद ए नरीना न थी. उन्हों ने भतीजे आल्ह देव को गोद लेकर कंनौज का वारिस बनाया, जिनकी पीढियां राजस्थान गईं और वहां जाकर अपनी हुकूमतें कायम कीं और वहाँ के राष्ट्र वर कहलए जो कि तत्सम होकर राठौर हो गया.





































































































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