Sunday, September 4, 2011

सलोन के मुस्लिम गहरवार 13



सलोन के लैंड माक्र्स :-


१-गुमनाम मजारें मूरिसे आला राजा मियाँ और रानी साहिबा की जो कब्रिस्तान में वाकअ है.
२- मूरिसे आला की कब्र से मुल्हिक गुम नाम मसिजद ३-सल्ला बाबा की मसिजद ४-दिलवर शाह की मसिजद ५-कच्ची मसिजद ६- कोतवाली की मसिजद ७-थवाहियों की मसिजद ८- खानकाह की मसिजद ९-खातून की मसिजद (खानकाह की मसिज्द के पास ) १०- शाहजी की मसिजद (गुरही) ११-शेखों की मसिजद १२- उस्मान खान की मसिजद १३सरायं की मसिजद
१४- सुब्बा रंगरेज़ की मसिजद १५- मिल्कियों की मसिजद १६- शियों की मसिजद १७- कैथाने की मसिजद १८-पैगम्बर पुर की मसिजद १९-नई बाज़ार की मसिजद २०- तवककली की मसिजद २१-चक्ले की मसिजद २२- मसिजद ज़मीं दराऊ २३- मुनव्वर गंज की मसिजद
२४- हाजी हुसैन की मसिजद २५- किंगिर्यों की मसिजद




इनके आलावा कुछ मखसूस मुक़ाम :-
*रौजः ए मुक़द्दस खानदान ए करीमी * खानकाह करीमी *कर्बला *ईदगाह *मजार सय्यद शकूर ओ सय्यद गफूर * रौजः कब्रिस्तान * इमाम बाड़ा मुत्तसिल कचेहरी *मजार शहीद मर्द बाबा. *मरहला जो अपने ज़माने में १०० फीट ऊंचा था इनके अलावः चार मंदिरें और एक गुरु द्वारा जो हाल में ही वजूद में आए. किसी ज़माने में सलोन को तीन हिस्से में जाना जाता था :
सलोन आयमा : पूरब जानिब का हिस्सा
सलोन खालसा : पश्चिम जानिब का हिस्सा (चौधराना)
करीम गंज बीच का हिस्सा

*सलोन का बिरादराना
सलोन में आबाद बिरादरी आपस में एक दूसरे की ज़रुरत पूरा करती रहीं.उनकी पहचान मंदार्जा जेल है :
१-मुस्लिम गहरवार २- मुस्लिम बैस ३- मुस्लिम कायस्थ ४-शेख ५- सय्यद ६-पठान 7 - मिल्की (शिया) 8-जाफ़री (करीमी) ९ - मेवाती १० - जुलाहे ११ - बेहने १२ -नाई १३ - कुंजड़े १४ -कसाई १५ - चिक्वे १६ - दर्जी १७ -थवही १८ - रंगरेज़ १९- मिरासी २० -हलवाई २१-घोसी २२- घसयारा
२३-चूड़ीहार २४-किंगिरिया २५- डफली २६-फ़कीर २७- मेहतर २८- रंडी भडुए.
२९-रस्तोगी ३०- सिख ३१- बनियाँ ३२-तेली ३३- हलवाई ३४- कलवार ३५- धरकार ३६- पटहार ३७- सोनार ३८- भुन्ज्वा ३९- कुम्हार ४०- लोहार ४१- बढई ४२-धोबी ४३- अहीर ४४- गडरिया ४५-मुराई ४६ -चमार ४७- पासी ४८-भड्डरी ४९-बरहमन ५०- तंबोली ५१-भंगी.




गंज शहीदां
सलोन के उत्तर जानिब ईद गाह में बनी एक चौकोर दरगाह में दो मजारें हैं. यह मजारें सय्यद सालार मसूद गाज़ी के दो सिपाहियों की हैं यह दोनों शहीद सय्यद शकूर और सय्यद गफूर, भाई भाई थे. रवायत है कि यह दोनों मैदान ए जंग से निकल कर अपने घोड़ों पर सवार सलोन आए, तंबोली की दूकान पर तंबोली से पान की फ़रमाइश की. तंबोली इन्हें देख कर डर गया और कहा आपके सर तो हैं नहीं, पान कैसे खएगे? यह सुनते ही दोनों धड घोड़ों से गिर गए. ये रवायती बात बातें है जो अक्सर मन गढ़ंत होती हैं और सच जैसी प्रचलित हो जाती हैं.
दोनों लाशों की सूरत ए वकुअ यूँ थी कि सर (नदारत)उनका मशरिक जानिब था और पैर मगरिब जानिब. उनकी कब्रें इस्लामी शरीअत के मुताबिक खोदी गईं और लाशें उसमें दफनाई गईं, उसके बाद कब्रें खुद बखुद शुमाल जुनूब से मशरिक और मगरिब जानिब हो गईं. इन क़ब्रों को आज भी देखा जा सकता है. मगर रवायत बहर हाल रवायत होती हैं, नामों और पेशे पर भरोसा किया जा सकता है.
यहाँ औरते मन्नत मानने आती है, मुराद पूरी होने पर चढ़ावा चढ़ती हैं. बहुत पहले वक्तों में यहाँ लोग आकर रिश्ते तय किया करते और शादी हो जाने पर नान्द मुर्ग़, पराठे बिरयानी और शोरबेदार चीजों पर फातेहा करते. हिन्दू बिरादरी की कुछ कौमें दूल्हे के डोले को यहाँ लेकर आते और आशीर्वाद लेते. तालीम आने के बाद अब बातें इतिहास हो चुकी है. मुझे अच्छी तरह होश है की शाह नईम अता शाह यहाँ अपने बुजुर्गों के उर्स के बाद गागर भरने आते और लोग उस पानी को प्रसाद की तरह ग्रहण करते.



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