
बजानिब याद ए रफ़तगां
माँढा में कोई राजा मिला न राज घराना. उनका महेल अपने माज़ी की अजमतों को समेटे हुए खामोश, ज़रूर मिला. महेल के सदर दरवाजे पर चद्रवंशी पताका गर्दिश का वक़्त लिए लहरा रहा था. लोगों ने हमें महेल के प्रबंधक तक पहुँचाया. बुज़ुर्ग प्रबंधक से हम लोगों ने आने का मुद्दुआ बयान किया, उन्हों ने हमारा खैर मकदम किया और महल के पुस्तकालय से कुछ किताबें निकलवा कर मेरे सामने रख दीं. जिसका हम लोगों ने मुतलअ किया और मतलब की बातें नकल कीं. दोपहर हो चुकी थी कि देखा दो पत्तल शुद्ध भोजन चला आया, जिसकी हम लोग ज़रुरत महसूस कर रहे थे. आगुन्तुकों के लिए यह महेल की परंपरा आज तक चली आ रही थी.
खाने से फारिग होने के बाद हमने महेल को अन्दर से देखने की अपनी ख्वाहिश उन बुज़ुर्ग वार से की. उन्हों ने मंदिर के एक नव जवान पुजारी को बुलवा कर हमको उसके हवाले किया. सूने पड़े महल में सिवाए अतीत की तस्वीरों और सामानों के, कुछ खास न था. महल की गलियारे में राजगान माँढा की तस्वीरे थीं, उन्ही के दरमियान हमने देखा कि एक तस्वीर नर्गिस की लगी हुई थी.
हमने पुजारी से पूछा कि यह नर्गिस की तस्वीर यहाँ कैसे?
पुजारी ने हँसते हुए बतलाया यह नर्गिस नहीं उसकी माँ जद्दन बाई की तस्वीर है जो रजा राम गोपाल की दाश्ता हुवा करती थी.
पुजारी ने महेल के आगोश में कायम मंदिर की तरफ इशारा किया कि यह मंदिर राज घराने का पूजा स्थल है. उसमे चमकते कलश के बारे में बतलाया कि यह खालिस सोने है और इसका वज़न सात मन है.
महेल से रुखसत होते हुए हमने महेल के न्यासी बुज़ुर्ग से पूछा कि कोई मुस्लिम गहरवार का घर बतलाएँ जो मुअत्बर हो. उनहोंने हमें माँढा के बा असर खानदान का नाम बतलाया, रौशन खान जो रजवाड़े के खास रुक्न हुवा करते थे. हम दोनों वहां पहुंचे, रौशन खान के साहब जादे एजाज़ साहब मिले, उनसे मैंने अपनी तहरीक का हासिल बतलाया कि हमारे हिन्दू मूरिस ए आला इसी माँढा से तअल्लुक़ रखते थे, हम लोग अपना माजी जानना चाहते हैं. एजाज़ साहब निहायत बा अखलाक इन्सान साबित हुए. उन्होंने बतलाया कि उनके वालिद मरहूम रौशन खान राजा राम गोपाल के राजकाज के दाखली उमूर के मुहाफ़िज़ हुवा करते थे, राजा साहब के हम निवाला हम प्याला होने का मुकाम रखते थे. एजाज़ साहब ने हमें मुस्लिम गहर्वारों कि भरपूर जानकारियाँ दीं.
कई मुस्लिम गहर्वारों के हालत बतलाए, साथ साथ उन मूल पुरुषों के नाम भी बलाए जिन्हों ने इस्लाम कुबूल किया था, और असबाब भी बतलाए कि उन्होंने क्यूं धर्म परिवर्तन किया था. इनका ज़िक्र यहाँ मुनासिब नहीं कि लंबी दास्तानें हैं. एजाज़ साहब ने हम लोगों की रात में एह्तेमामी दावत की और सोने का भी इन्तेज़ाम किया.
अजीब इत्तेफाक है कि सलोन की तरह ही यहाँ कुर्ब जवार के मुस्लिम गहरवार सब के सब ज़वाल पज़ीर नज़र आए जिनके मूल पुरुष हुक्मरान हुवा करते थे.
अजीब इत्तेफाक है कि सलोन की तरह ही यहाँ कुर्ब जवार के मुस्लिम गहरवार सब के सब ज़वाल पज़ीर नज़र आए जिनके मूल पुरुष हुक्मरान हुवा करते थे.
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