Monday, September 5, 2011

सलोन के मुस्लिम गहरवार (16)





इन्हीं मफ्कूदुल खबर में मैंने अपना नाम देना पसंद किया है. आज हूँ ,कल न होऊंगा, जैसे यह हमारे बुजर्ग कल थे, आज नहीं हैं.


गुल की मानिंद पी है हमने जहाँ में जिंदगी,
रंग बन कर आए हैं, बू बन के उड़ जाएँगे हम
.
 
बड़ा ही करब नाक मेरा बचपन था. एक वक़्त की रोटी के बाद दूसरे वक़्त का ठिकाना न रहता. एक ही कपडे को बरसों लादे रहता. इन हालात में खेतों और बागात की चोरी भी मुझे करनी पड़ती. दस साल तक किसी स्कूल का मुंह नहीं देखा, मेरे रिश्ते के मामा ने मज़्कूरह " जूनियर हाई स्कूल सलोन'' खोला और पांचवीं दर्जा पास बच्चों की एक क्लास बनाई, मोहल्ले के लाखैरे बच्चों को बाहर वरांडे में बिठा कर स्कूल का वज़न बढाया, उन्हीं लाखैरे बच्चों में एक मैं भी था जिसने किसी तरह से छटवां दर्जा पास करते हुए नवीं दर्जे में सर्वोसय विद्या पीठ इंटर कालेज सलोन में प्रथम स्थान हासिल किया.
सिर्फ छः सालों में हाई स्कूल पास करने के बाद फिर हौसला जवाब दे गया. आधे पेट के खाने और भर पेट बड़ों की मार और गलियाँ अब और गवारा न हुवा .
१९६० में सलोन से बाहर निकल कर, तबा आज़माई की, छः साल खना बदोशी में कटे, फिर मौक़ा मिला, मुझे अपनी सब से बड़ी दुश्मन गरीबी को मात देने का.गरीबी से नजात मिली तो दौलत की भूक भी जाती रही. इस बीच जितना मुमकिन था अपनों को सहारा देता रहा और उन्हीं से मात खता रहा.
पुवर फंड लेकर पढने वाला बच्चा लाखों रुपिये इनकम टेक्स भर चुका है. मैं मुतमईन हूँ कि धरती पर आकर धरती का हक अदा कर रहा हूँ.
मेरी चार लायक़ औलादें हैं, यही मेरी जमा पूँजी है.
बड़ी बेटी डाक्टर आसिया चौधरी अली गढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में लेक्चरार है.
दूसरी बेटी फराह खान कर्नल अशरफ़ खान की बीवी है और अपनी तालीमी बरकतों का फायदा उठा रही है,
बड़ा बेटा फैजी चौधरी तालीम की सीढ़ियाँ चढ़ता हुवा लन्दन पहुंचा और U K की नेशनलटी हासिल की.
चौथा बेटा मंज़र चौधरी सोफ्ट वियर इंजीनियर बन कर फ़िलहाल बंग्लोरू में कयाम पजीर है.
मैंने बचपन से ही मेहनत और मशक्क़त का सामना किया, जवानी में सोलह घंटे रोज़ाना काम किया, अब ज़ईफ़ी और बीमारी ज़िन्दगी में हाइल हो गई है,फिर भी आठ घंटे काम करता हूँ. अब कोई काम ऐसा नहीं करता जिसमें पैसे की चाह हो. मेरा सारा वक़्त इंटर नेट पर गुज़रता है जहाँ अपने ब्लॉग के मार्फ़त मैं अनजानों को इंसानियत की राहें दिखलाता हूँ, सच्चाई मेरी तहरीक है और झूट से मेरा बैर है.

झूट हर हालत में झूट है, चाहे वह मज़हबी अल्लाह बोल रहा हो या धर्मों का भगवन.


दुन्या ने तजुर्बात व हवादिस की शक्ल में ,
जो कुछ मुझे दिया है वह लौटा रहा हूँ मैं.

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