
मुस्लिम गहरवारों के नाम
ख़ुद को कहते हो गुलामाने-रसूले-अरबी1,
हैसियत दूसरे दर्जे के लिए हैं अजमी2,
तीसरा दर्जा हरब, ३रखता है 'मुंकिर', हरबी.
और फ़िर दर्जा-ऐ-जिल्लत4 पे हैं हिन्दी मिस्कीं5,
बरतरी६ को लिए मगरूर हैं काबा के अमीं७,
सोच है कैसी तुम्हारी ? भला कैसा है यकीं ?
हज से लौटे हुए हाजी से हकीक़त८ पूछो,
एक हस्सास९ से कुछ करबे-हिकारत पूछो।
है वतन जो भी तुम्हारा, है तुम्हें उसकी क़सम,
खून में पुरखो की धारा है? तुम्हें उसकी क़सम,
नुत्फे१० की आन गवारा है? तुम्हें उसकी,
जेहन का कोई इशारा है ? तुम्हें उसकी क़सम,
अपने पुरखों की खता क्या थी भला हिदू थे ?
क़बले इस्लाम सभी हस्बे खुदा हिन्दू थे।
जेब११ देता ही नहीं पुरखो की अजमत१२ भूलो,
उनको कुफ्फर१३ कहो और ये बुरी गाली दो।
खून में पुरखो की धारा है? तुम्हें उसकी क़सम,
नुत्फे१० की आन गवारा है? तुम्हें उसकी,
जेहन का कोई इशारा है ? तुम्हें उसकी क़सम,
अपने पुरखों की खता क्या थी भला हिदू थे ?
क़बले इस्लाम सभी हस्बे खुदा हिन्दू थे।
जेब११ देता ही नहीं पुरखो की अजमत१२ भूलो,
उनको कुफ्फर१३ कहो और ये बुरी गाली दो।
क़ौमे होती हैं नसब14 की कोई बुनियाद लिए,
अपने मीरास१५ से पाई हुई कुछ याद लिए,
तुम बहुत खुश हो बुरे माजी१६ की बेदाद१७ लिए,
अरबों की जेहनी गुलामी18 की ये तादाद लिए।
अपने मीरास१५ से पाई हुई कुछ याद लिए,
तुम बहुत खुश हो बुरे माजी१६ की बेदाद१७ लिए,
अरबों की जेहनी गुलामी18 की ये तादाद लिए।
अपने खूनाब19 की, नुत्फे की तहारत20 समझो,
जाग जाओ नई उम्मत21 की जरूरत समझो।
जाग जाओ नई उम्मत21 की जरूरत समझो।
अज सरे नव22 नया एहसास जगाना होगा,
इक नए बज्म२३ का मैदान सजाना होगा।
इक नई फ़िक्र24 का तूफ़ान उठाना होगा,
मादरे हिंद में ही काबा बनाना होगा।
राम और श्याम से भी हाथ मिलाना होगा,
नानको-बुद्ध को सम्मान में लाना होगा,
दूर तक माज़िए नाकाम25 में जाना होगा,
इस ज़मी का बड़ा इन्सान बनाना होगा।
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