Friday, September 2, 2011

सलोन के मुस्लिम गहरवार 5

राजा देव दत्त बनाम रजा मियाँ






माँढा महेल में मिला राजा रूद्र देव रचित ग्रन्थ " सत पथ रामायण" में रामायण की भूमिका में पहले लेखक ने अपने पूर्वजों के नामों और कामों का मुख्तसर ब्यौरा दिया है, राजा देव दत्त का भी उसमे ज़िक्र है.
लिखते हैं"राजा देवदत शेर शाह सूरी के बहकावे में आकर मुस्लमान हो गए थे. शेर शाह सूरी सहसराम (बिहार) का जागीर दार था. १५४० ई में इसकी जंग मुग़ल बादशाह हुमायूँ से मुकाम क़न्नौज में हुई थी जिसमें शेर शाह सूरी ने हुमायूँ को शिकस्त देकर हिदुस्तान की बादशाहत हासिल कर ली थी. उसने ही राजा देव दत्त को कन्नौज का राजा बना देने की लालच देकर मुसलमान बना लिया था."
"गहलौत गुहर दीप " की तहरीर नक्ल है - - -
राजा देव दत्त ने अहद बहलोल खान लोधी १४५६-५८ के दरमियाँ इस्लाम क़ुबूल किया जिनका इस्म ए गिरामी "राजा मियाँ" रखा गया. बाद कुबूल इस्लाम के परगना सलोन पूरा जिसमे ३६५ मवाजात पुख्ता व् ख़म थे, आबाद हुए. राजा देव दत्त कि औलादें बजहा भट्ट कुर्ब मणिक पुर और सलोन के मुसलमान, गहरवार कहे जाते हैं.
एक किताब"गहरवार वंशज " हमें मंदिर के पुजारी ने भेंट की जो स्वर्गीय ठाकुर बटुक बिहारी की अमूल्य रचना है. वह हमारे मूरिसे आला के बारे में लिखते है - - -
"एक रात राजा देव दत्त नींद के आलम में अपनी यवनी (मुसलमान) दाश्ता का झूठा पानी पी गए सुब्ह होते ही उन्हों ने अपने अज़ीज़ ओ अकारिब और अहलकारों को इकठ्ठा किया और सब के सामने रात की घटना को बयान किया. उसके बाद एलान किया कि अब मैं हिन्दू धर्म के लायक नहीं रहा कि मैं मुसलमान औरत का झूठा पानी पीकर मुसलमान हो गया"
आगे लिखते हैं कि - - -
''अपने भाइयों और औरतों का तनाव देख कर राजा देव दत्त ने शेर शाह सूरी की पनाह ली. बादशाह को ऐसे योग पुरुष की तलाश थी, यह जानकर कि राजा अज खुद मुसलमान हुए बादशाह ने उनको इज्ज़त बख्शी."





राजा देव दत्त ने क्यूँ धर्म परिवर्तन किया यह अहम सवाल है? क्या उनहोंने क़न्नौज राज की लालच में ऐसा किया?
या हिन्दू धर्म की छुवा छूत व्योस्था का सवाल उनके दिमाग को परिवर्तन पर मजबूर किया"
इसी अमानवीय व्योस्था के कारन चौथाई हिस्सा भारत का हिदू , हिन्दू से मुस्लमान हो गया है.
जो भी हो राजा देवदत्त एक योग पुरुष थे जिसकी तारीफ बटुक बिहारी और उनका परिवार करता है,
मेरी राय में उनकी मुस्लिम पटरानी का हाथ इसमें ज्यादा रहा होगा. इसके आलावा इस्लामी सम्राज का उस वक़्त ग़लबा था जो हिंदुत्व के घोर अंध विश्वाश को इस खामयाज़े का ज़िम्मेदार ठहरता है.
बाद में पंडितों और पुरोहितों ने उनको बहुत मनाया, मन्त्र और अनुष्ठानो का रास्ता बतलाया कि उनकी पुनः वापसी हो सकती है मगर वह न माने.
इतिहास कहता है कि राजा देव दत्त संजीदा और बा वकार शख्सियत थे, इनके धर्म परिवर्तन से परिवार जन और उनके राज में कोहराम मच गया. छोटे भाइयों में इनके खिलाफ बद दिली आ गई मगर इनके मुकाबिले में इनके सामने आने की हिम्मत न कर सके और राज्य को ही तर्क कर दिया.
राजा के साथ साथ प्रजा भी आंशिक रूप से धर्म परिवर्तित हो गई. सेना सहायक वैश्य, राज पाट का लेखा जोखा रखने वाले कयाश्थ, सेवक समाज जन जातियाँ भी अपने राजा के साथ सलोन खलसा में आकर बस गईं. राजा देव दत्त की दो रानियों में एक ने उनका साथ दिया और सलोन आकर मरीं, जिनकी कब्र आज भी कब्र गाह की एक वीरान मस्जिद में राजा मियाँ की कब्र के पहलू में देखी जा सकती है. बड़ी रानी सदमें को बर्दाश्त न कर सकीं और तर्क दुन्याँ होकर सन्यास ले लिया और काशी के संत समाज से जुड़ गईं.
राजा देवदत्त ने जब इस्लाम को अपनाया तो उनका इतिहास इनके बाद हिदू समाज ने लिखना बंद कर दिया.शेर शाह सूरी का अहद सिर्फ पाँच साल का रहा जोकि हुमायूँ पर फतह हासिल करने के बाद उन्हें मिला था. पाँच साल बाद हुमायूँ की उन पर फतह हासिल करके मुग़ल सम्राज कायम किया.



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