
अपने जैसे
ज़ेरे दामन विन्ध्याचल यानी इलाहबाद, वाराणसी और में हिदू गहरवारों के साथ साथ मुस्लिम गहरवार शाने बशाने बकस्रत पाए जाते हैं सलोन की तरह ही अपने हिन्दू पूर्वजों का इतिहास और अपने मूल पुरुष का नाम उनको भी याद है.
नवल गढ़ (बनारस) में मुस्लिम गहरवार बकसरत आबाद है. यह लोग वक़्त के साथ तालीम, तिजारत और ज़राअत में किसी से पीछे नहीं. खुद को राजा जय चंद की पांचवी औलाद राजा सकत सिंह से जोड़ते हुए बतलाते हैं कि उनके मूरिसे आला सकत सिंह , चरागे हिंद मखदूम शाह के हाथों पर बैत करके मुसलमान हुए थे, जिनकी मज़ार जाफराबाद में है. उनका नाम हो गया सकत सिंह से, सकत खान. कई पुश्तों तक रिआया उनके हाथ रही. १७५७ में राजा दायम खान को राजा बनारस ने शिकस्त देकर रियासत पर क़ब्ज़ा कर लिया. उनके बाद कोई फ़र्द इकतेदार हासिल न के सका. राजा सकत खान की नस्लें जिला बनारस की नस्लें नई और पुराणी चकिया, मंझौली, भडसल, भूसी, सरबत, और किराय गाँव वगैरा में बकसरत आबाद हैं.
पुरानी चकिया का हमारा दौरा बहुत ही खुश गवार रहा. जनाब अनवार हुसैन और डाक्टर अनीसुल हक़ गहरवारों ने हमारी मेज़ बनी की रात के खाने पर हमारे साथ खानदान के मुअत्बर लोगों को बुलाया, तवील गुफ्तुगू हुई, लोगों ने हमारी मालूमात में भरपूर अज़ाफा किया. यह खानदान राजा सकत खान की नस्लें है.
चितावन पुर
अजीब ओ ग़रीब बाशिंदे, मुस्लिम गहरवारो के, जिन्हें देखने और सुनने का मौक़ा मिला. आज भी वह सब मुजस्सम हिन्दू हैं, बस उनके नाम मुस्लिम हैं. खानदानी रक़ाबत उनका धर्म और ईमान है और उनकी आन बान है. वह लोग आज भी वहशत को जी रहे हैं. हर वक़्त आमादा ए खून ओ कुश्त रहते हैं.
हमारा उनके गाँव में दाखिला उनको अच्छा न लगा. अगर मैं उनके प्रधान के नाम का हवाला न देता तो शायद अपनी इज्ज़त और सर न बचा पाता. प्रधान मौजूद न थे, उन्हों ने मुझे अपने छप्पर में बिठाया और खातिर भी की, पत्तल में शकर देकर जिसे हमें फांकना पड़ा.
मैंने अपनी तहरीक का मुद्दुआ बयां किया और उनसे अपने सवालों के जवाब देने की गुज़ारिश की. उन्हों ने बतलाया कि वह राजा घाटम देव के वंसज हैं. वाक़ेआ है कि राजा की जवान साल बेटी का इंतेकाल हो गया था, उसकी लाश चिता पर रखी गई और उसको आग दी गई कि आग पाकर चिता भरभरा कर ढह गई, कफन भस्म हो चुका था और बेटी का शरीर नंगा हो गया था. घाटम देव को इसका सदमा लगा, उन्हों ने बेटी की लाश को मुस्लिम तरीके से दफ़न कराया और ? जाकर इस्लाम क़ुबूल किया.
घाटम देव के दो बेटे सलेम खां और दरिया खां में बैर हो गया था जिसे दोनों खानदान अब तक बाक़ायदा निभा रहे हैं. साल छे महीने में दोनों धडों में खूनी जंग होती है. पुलिस की मजाल नहीं कि सरकश गाँव में घुस सके. दोनों एक दूसरे के हाथ का छुवा पानी तक नहीं पीते.
हम जिस छप्पर में बैठे थे उसमें हमने देखा कि तलवार, फरसे और दीगर हथियार खुसे हुए थे, जिन्हें देख कर हम लोगों का खून सूख रहा था. एक ने हमसे पूछा कि हम लोग हिन्दू धर्म में चले जाना चाहते हैं, आप लोगों की क्या राय है?
हमने बस इतना ही कहा आप लोग अपना फैसला बेहतर कर सकते हैं.
गाँव में बे मीनार और बे गुम्बद की एक एक मस्जिद है जो मदरसे का भी काम करती है. उसमें बच्चों को तालीम के नाम पर एक मोलवी कुरआन का रवायती दर्स देता है और जुमा जुमा उन लड़ाकुओं को नमाज़ भी पढ़ाता है. गाँव में परदे का यह आलम था कि कोई बच्ची जाद भी हमें नज़र न आई..
गहेरवारों का इतिहास और राजा देवदत्त उर्फ़ राजा मियाँ, मेरी महदूद और मजबूर हालात की काविश है जो नामुकम्मल और अधूरी है. मुझे उम्मीद है कि आइन्दा आने वाली नस्लों में कोई लायक़ सपूत इसे मज़ीद तहक़ीक़ के बाद मुकम्मल करेगा.
जुनैद
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Bhadsal ka name about bhorsar hai,manjholi ka name majhuin hai aur sarbat ka name sirbit hai.. Babloo Khan Gaharwar
ReplyDeleteMunkir sahab correct comment hai, name replace kar dijiega
ReplyDeletePurani chakia ke jin shahb ka nam liya ja rha jnab Anwer khan vo hmare great grandfather h... Hme aur link chahiye...
ReplyDeleteKya hme kuchh aur janne ko mil skta h so plz koi link ya book ka nam send kriye
Deletethank you sir
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